قرآن کریم آخری الہامی کتاب اور عالمی وابدی سرڈچشمۂ ہدایت کی حیثیت سے پڑھنے سمجھنے اور معاشرے میں اس کے قوانین کے اطلاق کے سلسلے میں جس اہتمام کاتقاضا کرتا ہے وہ کسی طرح محتاج بیان نہیں ہے ۔ اس سلسلے میں جاننا ضروری ہے کہ قرآن کریم معاشرے میں اصلاح کے تدریجی طریق کار کے پیش نظر مختلف حالات میں نازل ہوتا رہا ۔ ا ن مخصوص حالات اور واقعات کی واقفیت ہر مسلمان فر د بالخصوص ہر مبلغ کے لیے از بس ضروری ہے ۔اس سلسلے میں امت کےعلماء کرام نے پوری کوشش کی ہے اور آیات قرآنی کے شان نزول کو تفصیل کےساتھ محفوظ کیا ہے ۔انہی مستند کتب اور مآخذ میں سے زیر نظر کتاب ’’اسباب نزول القرآن‘‘ ہے جو امام ابو الحسن علی بن احمد بن محمد الواحدی کی تصنیف ہے ۔ جس میں قرآنی آیات کے اسباب یعنی شان نزول کا احاطہ کیاگیا ہے۔اللہ تعالی مصنف مترجم اور ناشرین کی اس کاوش کو شرف قبولیت سے نوازے اور اس طالبان ِعلوم نبوت کےلیے نفع بخش بنائے (آمین) (م۔ا)
عناوین |
|
صفحہ نمبر |
عرض ناشر |
|
5 |
نزول قرآن کے آغاز کا بیان |
|
12 |
الفاتحہ |
|
18 |
البقرہ |
|
19 |
آل عمران |
|
88 |
النساء |
|
133 |
المائدہ |
|
175 |
الانعام |
|
200 |
الاعراف |
|
212 |
الانفال |
|
217 |
التوبہ |
|
228 |
یونس |
|
252 |
ہود |
|
253 |
یوسف |
|
257 |
الرعد |
|
259 |
ابراہیم |
|
263 |
الحجر |
|
266 |
النحل |
|
266 |
بنی اسرائیل |
|
272 |
الکہف |
|
286 |
مریم |
|
289 |
طہ |
|
292 |
انبیاء |
|
294 |
الحج |
|
296 |
المومنون |
|
300 |
النور |
|
303 |
الفرقان |
|
319 |
الشعراء |
|
324 |
النمل |
|
327 |
القصص |
|
331 |
العنکبوت |
|
327 |
الروم |
|
331 |
لقمان |
|
332 |
السجدہ |
|
336 |
الاحزاب |
|
338 |
سبا |
|
339 |
فاطر |
|
342 |
یس |
|
349 |
الصافات |
|
352 |
ص |
|
353 |
الزمر |
|
354 |
المومن |
|
357 |
حم السحدہ |
|
358 |
الشوری |
|
359 |
الزخرف |
|
361 |
الدخان |
|
362 |
الجاثیہ |
|
363 |
الاحقاف |
|
368 |
محمد |
|
382 |
الفتح |
|
384 |
الحجرات |
|
386 |
ق |
|
389 |
الذاریات |
|
392 |
الطور |
|
399 |
النجم |
|
401 |
القمر |
|
405 |
الرحمن |
|
406 |
الواقعہ |
|
409 |
الحدید |
|
413 |
المجادلہ |
|
416 |
الحشر |
|
418 |
الممتحنہ |
|
420 |
الصف |
|
423 |
الجمعۃ |
|
425 |
المنافقون |
|
426 |
التغابن |
|
428 |
الطلاق |
|
431 |
التحریم |
|
432 |
الملک |
|
434 |
القلم |
|
436 |
الحاقہ |
|
437 |
المعارج |
|
438 |
نوح |
|
439 |
الجن |
|
439 |
المزمل |
|
441 |
المدثر |
|
442 |
القیامۃ |
|
442 |
الدھر |
|
443 |
المرسلات |
|
444 |
النباء |
|
444 |
النازعات |
|
445 |
عبس |
|
446 |
التکویر |
|
447 |
الانفطار |
|
448 |
المطففین |
|
449 |
الانشقاق |
|
450 |
البروج |
|
451 |
الطارق |
|
452 |
الاعلی |
|
452 |
الغاشیہ |
|
453 |
الفجر |
|
454 |
البلد |
|
455 |
الشمس |
|
455 |
اللیل |
|
456 |
الضحی |
|
456 |
الم نشرح |
|
457 |
التین |
|
457 |
العلق |
|
457 |
القدر |
|
457 |
البینہ |
|
457 |
الزلزال |
|
457 |
العادیات |
|
457 |
القارعہ |
|
457 |
التکاثر |
|
457 |
العصر |
|
457 |
الہمزہ |
|
457 |
الفیل |
|
458 |
قریش |
|
457 |
الماعون |
|
457 |
الکوثر |
|
457 |
الکافرون |
|
457 |
النصر |
|
457 |
اللہب |
|
457 |
الاخلاص |
|
457 |
الفلق |
|
457 |
الناس |
|
458 |